द्वारा – शिखा श्रीवास्तव
व्यर्थ-सा है इसके बारे में लिखना ..
“ये आरोप प्रत्यारोप का खेल”, जिसने हमें इस कगार पर ला खड़ा किया है कि आज की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के लिए तथाकथित बुद्धिजीवी इस वर्ष को ही अशुभ कह देना उचित समझते हैं| शायद इसी विज्ञान के सहारे चल रहा है हमारे देश का विकास.. ऐसा विकास जो हीन-भावना जैसी लाइलाज बीमारी से ग्रस्त हो चुका है और इसमें कोई संदेह नहीं कि ज्यों ही इस पर १३५ करोड़ महाज्ञानियों की निर्भरता पड़ती है तो इसकी कमर चरमरा जाती है!
एक हीन भावना इंसान को किस कदर गर्त की ओर ले जा सकती है इसके कई सटीक उदाहरण आज सर्वविदित हैं|
चाहे मजदूरों के हित के नाम पर आत्मनिर्भर परिवारों के मान-सम्मान की धाज्जियाँ उड़ाना हो या फिर समानता के अधिकार के नाम पर स्टार किड्स के बहिष्कार की मांग करना हो, यह स्पष्ट है कि इस देश की जनता का एक बड़ा वर्ग यह समझता है कि देश के गरीबों को न्याय दिलाना है तो हमें धनाढ्य परिवारों की संपत्ति तथा उनके आत्म-सम्मान पर धावा बोलना होगा|
इनका विरोध प्रदर्शन दर्शाता है कि पूर्णतया सत्य तो कहते थे फ़िल्म अदाकार राजकुमार जी कि जिन के घर शीशे के होते हैं वे दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते, परन्तु वास्तविकता तो यह है कि जिनके घर पत्थर के बने हैं वे तिनकों के बने घर में रहने वालों की स्थिति का उपहास करने के लिए शीशे से बने घरों पर स्वयं पत्थर फेंकते हैं|
हे सृष्टिकर्ता! मुझे संदेह नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण महामारी की स्थिति केवल हम पत्थर के घरों में रहने वालों के लिए ही है क्यूँकि वे तो सुखी ही होंगे जो होने वाले दुष्कर्म, हत्या, एसिड अटैक, तस्करी, भुखमरी तथा भिन्न प्रकार के उत्पीड़न का शिकार होने से बच गए तथा वे जिन्होंने सपरिश्रम स्वयं को आत्मनिर्भर बना लिया|
हे विश्वेश्वर! आपको कोटि कोटि नमन! अब आपसे केवल यही प्रश्न है कि यदि ये सर्वनाश है तथा धर्म की इस भूमि पर पुनर्स्थापना है तो इसमें देर कैसी?