द्वारा – अत्रेया अग्रहरी
आओ न पंछी,
एक बार फिर से वही उड़ान भर के दिखाओ न पंछीः
छूट गया जो पंखो से तुम्हारे,
वही हौसला लाओ न पंछीः
अब आओ न पंछी ।
घर के बाहर चैखट पर जो तुम्हारा बसेरा था,
उसको कैसे तुम भूल गये पंछी –
हिम्मत थी तुम्हारी,
जो तिनके इक्ठ्ठे कर आपस में-
आनंद का घोसला बनाया ।
कोई सोने का पिंजरा तो नही न ?
इसलिये वापस आओ न पंछी ।
देखेंगे जब शाम के सूरज के सामने,
तुम्हारे पंखो की उड़ान से फैले आसमां को –
तब ज़रूर से ज़रूर यही गुनगुनायेंगे सब,
आओ न पंछी,
की फिर से वही उड़ान भर के दिखाओ न पंछी ।।